इंदौर. 16 साल की प्रेम कहानी। कहानी में कई मोड़। एक्सीडेंट में लड़का लकवाग्रस्त हो गया। एमबीए लड़की फिर भी शादी को राजी। परिवार की सहमति नहीं थी। किसी तरह लड़के के घरवाले माने और दुल्हन ने व्हीलचेयर पर बैठे दूल्हे को वरमाला डाली। लोगों को पता चला तो इस प्रेम कहानी की मिसाल देने लगे। लड़की के घरवालों तक बात पहुंची। उन्हें लगा कि जिसकी मिसाल सब दे रहे हों उसमें गलत क्या है? मां ने बेटी को घर बुलवाया और उसे आशीर्वाद दिया।
यह कहानी है गौरव श्रीवास्तव और सविता चौबे की। फरवरी में जब सविता ने गौरव से शादी की तो माता-पिता ने दूरी बनाए ली थी। वे इस शादी को लेकर राजी नहीं थे, लेकिन सविता के कदम की सभी ने सराहना की और उसकी मिसाल दी जाने लगी तो माता-पिता को गर्व महसूस हुआ।
सविता कहती है पहले मां को लगता था कि लोग क्या कहेंगे? समाज को क्या जवाब देंगे पर मीडिया में खबर आने के बाद पूरे देश से परिजनों को फोन आए। सबने बधाई दी। लोग क्या कहेंगे का सवाल गर्व में बदल गया। मां को अब भी इस बात की चिंता है कि आगे की चुनौतियों का सामना हम कैसे करेंगे, लेकिन मैं हमेशा उन्हें कहती हूं कि चुनौतियां ही हमें जीने की नई राह दिखाती हैं।'
सांत्वना नहीं मार्गदर्शन चाहिए
गौरव पिछले दो साल से विनायक कंसलटेंसी के नाम से जॉब प्लेसमेंट का काम कर रहे हैं। गौरव और परिजन कहते हैं हमें लोगों के सांत्वना की जरूरत नहीं बल्कि मार्गदर्शन चाहिए। गौरव आसानी से लेपटॉप पर सारा काम कर लेते हैं। कहीं भी आने-जाने के लिए उनके पास ऑटोमेटिक व्हीलचेयर है और एक विशेष कार भी।
रांग नंबर पर बातचीत से शुरू हुआ था प्यार का सफर
गौरव कहते हैं- 18 साल पहले 1998 में सविता से एक रांग नंबर लग गया, जो मेरे घर का था। फोन उठाकर जब बात की तो सविता ने पूछा कि कहां से बोल रहे हैं। मैंने मजाक में कह दिया चिडियाघर से। दोनों हंसे और फोन रख दिया। कुछ दिन बाद दोबारा फोन किया और इस तरह बातें शुरू हो गई। करीब तीन माह बाद साकेत नगर में एक दोस्त के घर के नीचे दोनों मिले। मिलने का सिलसिला बढ़ा। करीब सात साल तक ऐसे ही चलता रहा।
मैं कंस्ट्रक्शन का बिजनेस करने लगा। दोनों ने शादी के बारे में सोचा और 2005 में घर वालों को बता दिया। अलग-अलग समाज के होने के कारण दोनों के घरवालों ने इनकार कर दिया। मगर हम दोनों कहां मानने वाले थे। एक-दो साल बाद जब दोनों परिवारों को लगा कि ये नहीं मानेंगे तो वो थोड़ा तैयार हुए। जन्म कुंडलियां मिलाई तो सविता मंगली निकली। इस पर जो बात बनी थी वो भी बिगड़ गई। दोनों परिवारों ने साफ इनकार कर दिया। दोनों परिजनों को मनाने में लगे रहे।
सविता कहती हैं- इसी बीच 17 अगस्त 2008 को गौरव अपने तीन दोस्तों के साथ महू के पास वांचू पाइंट गए थे। उनकी कार खाई में गिर गई। जब गौरव को दोस्तों ने बाहर निकाला तो उनका शरीर काम नहीं कर पा रहा था। अस्पताल गए तो डॉक्टरों ने बताया कि स्पाइनल इंज्युरी होने के कारण शरीर को लकवा हो गया है। सभी के पैरों तले जमीन खिसक गई लेकिन तब भी ये प्यार कम नहीं हुआ।
परिवार वालों ने इस दुर्घटना के पीछे मेरे मंगली होने को जिम्मेदार ठहराया। गौरव से मिलने घर जाती तो घर वाले मिलने नहीं देते। घंटों घर के बाहर ही बैठी रहती। कुछ समय बाद, आखिर हमारे प्रेम और समर्पण को गौरव के परिवार ने भी समझा और मुझ पर लगाई रोक हटा दी। गौरव ने मुझसे कहीं और शादी करने के लिए कहा। मेरे परिवार ने लड़का भी देख लिया लेकिन जल्दी ही हमारी समझ में आ गया कि एक-दूसरे के बिना नहीं जी सकते। तय हो गया कि कुछ भी हो, शादी करेंगे।
पहले कोर्ट में शादी, फिर वरमाला
कोर्ट में 17 फरवरी को गौरव और सविता ने शादी कर ली। परिवार के इकलौते बेटे की शादी का जश्न भी जरूरी था। इसलिए 22 फरवरी को साकेत क्लब में गौरव ने समारोहपूर्वक सविता की मांग में सिंदूर भरकर सात जन्मों तक साथ निभाने की कसमें खाई। पूरे कार्यक्रम से सविता के माता-पिता ने दूरी बनाए रखी, हालांकि सविता का भाई जरूर शामिल हुआ।
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